कुछ ही देर में जब वह लौटी तो हल्के गुलाबी रंग का नाइट-गाउन पहने हुए थी.
खुले बालों से शैम्पू की सुगंध से कमरा महक उठा. राजीव का सरूर और भी
गहराने लगा. वह सोफ़ा पर थोड़ा अधलेटा हो कर बैठा तो रचना बोल उठी.
Author's Name: एम ० के ० बजाज अंजुम
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राजीव और रचना दोनों एक ही कम्पनी में काम करते थे. राजीव ने एक
प्रोबेशनेरी की हैसियत से काम शुरू किया था. अपनी 15 बरसों की कड़ी मेहनत,
लगन व ईमानदारी की बदौलत वह आज इस मुक़ाम पर पहुँचा था कि उसके साथी उससे
ईर्ष्या करने लगे थे. अभी तीन महीने पहले ही कम्पनी ने राजीव को बिहार
राज्य का रीजनल हेड बनाया था.
मुख्यालय पटना में होने की वजह से
राजीव को भोपाल छोड़ना पड़ा. हालाँकि उसे यह शहर इतना पसंद था कि उसने एक
प्लॉट भी ख़रीद लिया था. होशंगाबाद रोड पर. उसने सोचा था कि यहीं पर अपने
लिए एक बंगला बनाएगा.
भोपाल में ही उसकी मुलाक़ात रचना से हुई थी.
कुछ वर्षों पहले रचना ने इस कम्पनी को ज्वाइन किया था. रचना मैनज्मेंट
ट्रेनी थी. राजीव उस वक़्त ब्रांच हेड था.
एम॰बी॰ऐ करने के बाद एक
सेल्ज़ ऑफ़िसर के तौर पर रचना का बिज़्नेस वर्ल्ड में यह पहला क़दम था.
कॉलेज में ही यह पढ़ाया गया था कि वास्तविक दुनिया में काम करने के तरीक़े
किताबी शिक्षा से बहुत अलग होते हैं. फ़ील्ड में प्रतिदिन एक नई क्लास
होती है. नए लेसन होते हैं. सीन्यर्ज़ के अनुभव से आपको ज़्यादा से ज़्यादा
सीखना चाहिए. अपनेतेज़ तर्रार रवैये से रचना ने जल्दी ही सफलता के फल का
स्वाद चखना शुरू कर दिया. उसकी प्रारम्भिक सफलताओं में राजीव का भी बहुत
योगदान था.
प्रतिदिन शाम को फ़ील्ड से लौट कर रचना राजीव से दिन भर
की अपनी भागदौड़ का ज़िक्र करती. राजीव की एक शाबाशी से उसके दिन भर की
थकान उतर जाती. अगले दिन एक नए उत्साह से काम करने की ऊर्जा ले कर वह घर
जाती. जहाँ पर उसका परिवार उसकी प्रतीक्षा में रहता था.
उसके परिवार
में पति के अलावा एक बेटा और सास ससुर सब एक साथ ही रहते थे. ससुर जी
सरकारी सेवा से निवृत थे और पेन्शन पाते थे. पति शशिकिरणएक औसत दर्जे के
मुलाज़िम थे. ज़्यादा पढ़ नहीं पाए थे क्यूँकि पढ़ाई में उनका कभी मन नहीं
लगता था. शक्ल सूरत अच्छी थी. बचपन से ही फ़िल्मों में काम करने की तमन्ना
रही. उसकी फ़िल्मी अदाओं से प्रभावित हो कर रचना ने अपने परिवार की इच्छा
के विरुद्ध उसके साथ शादी कर ली थी.माता पिता शादी में भी नहीं आए.
शुरू-शुरू में तो सब ठीक रहा लेकिन धीरे-धीरे प्यार का बुख़ार उतरने लगा.
वास्तविकताओं से सामना होने पर सब रोमाँसजाता रहा. बात बात पर कहा सुनी
होने लगी. प्रतिभा सम्पन्न और महत्वाकांक्षी रचना के लिए यह सब बर्दाश्त
करना कठिन सिद्ध हो रहा था. लेकिन समाज के डर से उसने चुप्पी धारण की हुई
थी.उसने शशि के माता पिता से सहायता की अपेक्षा की तो निराशा ही हाथ लगी.
उनको अपने एकलौते बेटे में कोई कमी दिखाई नहीं देती थी. उल्टे उन्होंने
रचना के चरित्र व चाल चलन पर सवाल उठा दिए. उसको याद दिलाया कि कैसे वह
अपने माता पिता को छोड़ कर अपनी मर्ज़ी से शादी कर के आयी थी. रचना फँस
चुकी थी. इस जाल से निकालने का कोई रास्ता नहीं दिखाई देता था.
यूँ
ही वक़्त कटता गया. बेटे रमण का जन्म हुआ. रचना माँ बनी. उसे उम्मीद जगी
कि बेटा होने पर शायद परिवार का व्यवहार कुछ अच्छा हो जाए. लेकिन उसकी
उम्मीदों पर पानी फिर गया. जब एक दिन शशि ने उसको जॉब छोड़ने के लिए कहा.
“रचना, माँ से रमण को सम्भाला नहीं जाता. उनको इस उम्र में आराम की ज़रूरत है. तुम ऐसा करो कि जॉब छोड़ दो और घर पर रहो. माँ और बाबू जी का भी कुछ ध्यान रखो.” – शशि ने शाम को घर लौटने पर कहा.
रचना के लिए जॉब छोड़ कर घर पर रहना एक अकल्पनीय बात थी. मानसिक प्रताड़ना
बढ़ती जाती थी. शशि के ख़र्चे उसकी आमदनी से कहीं ज़्यादा थे. रचना की
आमदनी का बड़ा हिस्सा घरेलू ज़रूरतों में ही ख़र्च हो जाता था. कुछ बचता तो
शशि उससे माँग लेता. इतने वर्षों तक काम करने के बावजूद उसके पास अपनी कोई
ख़ास बचत नहीं थी.
इस तनाव भरे वातावरण से मुक्ति पाने का कोई रास्ता नहीं था. रचना ने काम और ऑफ़िस में ही सर्वस्व लगा दिया.
ऐसे में ही राजीव ने भोपाल में ब्रांच हेड का पदभार ग्रहण किया था. शाम को
घर जाने की कोई जल्दी न होती. स्टाफ़ के जाने के बाद भी दोनों बैठे रहते.
बिज़्नेस के साथ साथ आपसी मेल-मिलाप भी बढ़ता गया.
राजीव को
बिज़्नेस के लिए भोपाल के अलावा ग्वालियर और इंदौर का भी दौरा करना होता
था. एक बार कम्पनी के एम॰डी॰ का इंदौर का दौरा हुआ तो मध्यप्रदेश के सभी
ब्रांच-हेड्ज़ को बुलाया गया. राजीव के साथ रचना को भी जाने का अवसर मिला.
एम॰डी॰ से मिलने के मौक़े बार-बार नहीं मिलते. वह अच्छे से जानती थी कि
राजीव ही उसको कैरियर में आगे बढ़ने में मदद कर सकता है. उसने इस मौक़े को
हासिल किया और दोनों कम्पनी की कार से इंदौर आ गए.
मीटिंग इंदौर के
होटेल ‘लेमन ट्री’ में थी. दिन भर मीटिंग चलती रही. भोपाल ब्रांच के काम
की सराहना हुई. राजीव ने एम॰ डी॰ सर से रचना के काम करने के तरीक़े की
तारीफ़ की तो रचना का सर गर्व से ऊँचा हो गया. चेहरे की लाली गहरा गयी.
आँखों में चमक आ गयी. उत्साह भरे स्वर में उसने राजीव के नेतृत्व और
गाइडेन्स के विषय में एम॰ डी॰ सर को अवगत कराया. उसने बताया कि कैसे पग-पग
पर राजीव ने उसको आगे बढ़ने में मदद की है.
“वेल राजीव, यू हैव गॉट वेरी गुड ऑफ़िसर विथ यू.” – एम॰ डी॰ ने कहा. “येस सर – आइ एम लकी” – राजीव ने सहमति जताई. “देखो राजीव, अच्छे लोगों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. कम्पनी अच्छे लोगों की मेहनत से ही तरक़्क़ी करती है.” “जी सर” “मुझे विश्वास है कि तुम्हारी टीम अपने टारगेट ज़रूर पूरे करेगी.” “ज़रूर सर” – राजीव ने आश्वासन दिया.
रचना दोनों की बातें बहुत ध्यान से सुन रही थी. ख़यालों ही ख़यालों में वह
अगले पाँच सालों में ख़ुद को राजीव की जगह देख रही थी. ब्लैक कलर का
ऐलन-सोली का सूट और रेड टाई. रे-बैन का चश्मा. हाई हील के सैंडल. एक हाथ
में फ़ाइल और दूसरे हाथ में ऐपल का मोबाइल.
“क्यूँ रचना, हम अपना टारगेट पूरा करेंगे ना?” – राजीव की आवाज़ से रचना का सपना टूटा. “अवश्य सर” – रचना ने विश्वास भरे स्वर में कहा.
एम॰ डी॰ शाम की फ़्लाइट से मुंबई लौट गए. अन्य स्टाफ़ भी अपने अपने गन्तव्य की ओर निकल गए.
राजीव और रचना के लिए इसी होटेल में रूम्ज़ बुक थे. रूम नंबर302और
303.लेमन ट्री स्टार होटेल था. बॉर और रेस्तराँ से सुसज्जित. 8 बजे लॉबी
में मिलना तय हुआ.
एक सफल मीटिंग के बाद राजीव काफ़ी रिलैक्स्ड और
उत्साहित लग रहा था. यही मनोस्थिति रचना की थी. दोनों कैज़ूअल ड्रेस में
थे. राजीव ने रचना की आँखों में देखा तो वह मुसकरा दी. इतना काफ़ी था. क़दम
बॉर की ओर बढ़ गए.
ग्राउंड फ़्लोर पर दायीं ओर स्थित बॉर में
हल्की नीली लाइट्स और वेस्टर्न म्यूज़िक अपने शबाब पर था. पास के डान्स
फ़्लोर पर कुछ जोड़े थिरक रहे थे.
राजीव ने अपने लिए व्हिस्की और रचना के लिए रेड वाइन का ऑर्डर दिया.
पहला दौर हो जाने पर रिपीट ऑर्डर हुआ.
बातों का सिलसिला चल रहा था. “सर, आप ने तो एम॰डी॰ सर का दिल जीत लिया. बस अब तो आपका प्रमोशन पक्का है.” – रचना ने कहा. “अरे तुम नहीं जानती हो. इतना आसान नहीं है.” – राजीव ने जवाब दिया. “क्यूँ सर, ऐसा क्या है? हमारे टारगेट भी पूरे होंगे.” “सिर्फ़ टार्गेट से कुछ नहीं होता. और भी बहुत कुछ करना पड़ता है.” “और क्या सर ……..” “जाने दो समझ जाओगी, समय आने पर.” – राजीव ने यह कह कर रचना को चुप कर दिया.
लेकिन रचना का महत्वाकांक्षीदिमाग़ बहुत तेज़ी से सोच रहा था. उसका तो जीवन में एक ही मक़सद था. आगे बढ़ना. बस.
वेटर आ गया था. रिपीट ऑर्डर दे कर राजीव ने रचना से पूछा–“तुम्हारी क्या प्लानिंग है?”
“किस बारे में सर?” “कैरीयर के बारे में”
“सर, मैं इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ूँगी.” – रचना ने दृढ़ता से कहा. “गुड. तुम ज़रूर आगे बढ़ोगी.” – राजीव ने कहा तो रचना के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.
यह कहना मुश्किल था कि रचना सुंदरता के पैमाने पर कितनी खरी उतरती थी. गोल
चेहरा, गेहूँआ रंग, गहराई लिए मोटी काली आँखें. सामान्य केश सज्जा. फिर भी
न जाने क्यूँ आज इस वक़्त राजीव को वह अच्छी लग रही थी. शायद इसका कारण
यहाँ का वातावरण था. ड्रिंक्स का असर और बीच बीच में रचना का मुस्कुराते
हुए उसे देखना. राजीव की रग़ों में ख़ून की रफ़्तार तेज़ होने लगी. उसके
कानों का रंग लाल हो गया और गरमी का आभास होने लगा. उसने हाथ बढ़ा कर रचना
के कंधे पर अपना हाथ रख दिया.
उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोला – गुड गर्ल. “थैंकयू सर”
चलो डिनर लेते हैं. डाइनिंग हॉल में ज़्यादा लोग नहीं थे. इसका कारण था कि केवल इस होटेल के गेस्ट्स के लिए ही बुफ़्फ़े था.
“सर, मैं आप की तरह एक सफल ऑफ़िसर बनना चाहती हूँ.” – रचना ने सूप लेते हुए कहा. “क्यूँ नहीं, तुम में वो सब गुण मैं देख रहा हूँ, जो एक अच्छे ऑफ़िसर में होने चाहिए.” – राजीव ने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा. “मुझे आप की मदद की बहुत ज़रूरत है.” “अरे, मैं तो हमेशा ही तुम्हारे साथ हूँ. लेकिन मेहनत तो अपनी ही काम आती है.”
“सर, मैं मेहनत में कोई कमी नहीं रखूँगी. बस आप मार्ग-दर्शन करते रहिए.” –
रचना ने राजीव के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा. राजीव को उसके हाथ का
स्पर्श सुखद लगा.
डिनर के बाद दोनों लिफ़्ट से थर्ड फ़्लोर पहुँचे. रूम नम्बर 302रचना के नाम से बुक था.
“आइए ना, सर” – रचना ने अपने रूम में प्रवेश करते हुए कहा.
राजीव चुप-चाप अंदर चला आया.
“इधर बैठिए, सर” – उसने सोफ़ा की ओर इशारा करते हुए कहा. “मैं बस अभी आई” – कह कर बाथ-रूम की ओर चली गयी.
एक ही सीट का सोफ़ा और उसके सामने ग्लास-टॉप का टेबल. टेबल पर छोटा सा
ग़ुलदान. रोमैन्स का प्रतीक, गुलदान का गुलाब मद्धिम रोशनी में मानों कुछ
संदेश दे रहा था.
कुछ ही देर में जब वह लौटी तो हल्के गुलाबी रंग
का नाइट-गाउन पहने हुए थी. खुले बालों से शैम्पू की सुगंध से कमरा महक उठा.
राजीव का सरूर और भी गहराने लगा. वह सोफ़ा पर थोड़ा अधलेटा हो कर बैठा तो
रचना बोल उठी.
“आप थक गए होंगे, सर. थोड़ा आराम कर लीजिए. इधर बेड
पर लेट जाइए. मैं यहाँ सोफ़ा पर बैठ जाती हूँ.” – कह कर रचना ने राजीव की
बाँह धीरे से पकड़ी.
राजीव उठ कर बेड पर आ गया. उसने रचना की बाँह
पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. रचना ने कोई विरोध नहीं किया. वह राजीव के गठे
हुए बदन के ऊपर एक कोमल शाख़ की तरह गिर गयी. उसके बदन से ताज़ा फूलों की
ख़ुशबू आ रही थी. इस ख़ुशबू ने राजीव का होशो-हवाश उड़ा दिया. उसने रचना को
अपने बाहुपाश में ले कर सीने से लगा लिया.
लेकिन कुछ ही क्षणों में राजीव को उचित-अनुचित कि आभास हुआ. उसने स्वयं को अलग करते हुए कहा– “यह क्या कर रहे हैं हम? यह ग़लत है.”
कुछ ग़लत नहीं है, सर! नहीं. नहीं रचना मैं एक शादी-शुदा…………….. राजीव ने लड़खड़ाते स्वर में कहा. तो क्या हुआ? मैं भी तो शादी-शुदा हूँ. फिर भी हमें यह नहीं करना चाहिए. यह अनुचित है.
इन बातों का रचना पर कोई असर न था. उसकी साँसे तेज़ चल रही थीं. उसकी प्यास की कोई थाह न थी. उसने राजीव को अपने क़रीब खींचते हुए कहा. ऐसा मौक़ा फिर कब मिलेगा? आप ने ही तो कहा था कि बहुत कुछ करना पड़ता है. मैं किसी भी क़ीमत पर आगे बढ़ना चाहती हूँ.
दामिनी बादलों का साथ छोड़ दे तो वापस बादलों में नहीं जाती. राजीव भी
जवाँ था. ऊपर से घर से दूर. नशे का आलम. उचित अनुचित का भाव उसके मन से
शीघ्र ही ग़ायब हो गया.
“तुम इतनी सेक्सी हो, मैंने ऐसा कभी सोचा नहीं था.” “आप इतने स्मार्ट हैं. कोई कैसे ख़ुद पर क़ाबू रख सकता है सर!”
“सर मत कहो. अभी हम फ़्रेंड्ज़ हैं, बस.” - कह कर राजीव ने उसके होंठों
पर एक गहरा चुम्बन लिया. रचना कसमसा कर उससे चिपट गयी. दामिनी बादलों के
झुरमुट से निकल कर दो जवान जिस्मों को अपने आग़ोश में लेने को व्याकुल थी.
हाथ बढ़ा कर उसने साइड लैम्प को बुझा दिया.
राजीव के हाथ रचना के वक्ष की गोलाइयों को मापते हुए उसकी कमर से होते हुए
नितम्बों तक जा पहुँचे. ज़ोर से उसने दबाया तो आनंद की लहर रचना के ज़िस्म
में दौड़ गयी. उसने ख़ुद को राजीव के और क़रीब किया तो उसे कठोरता का
अनुभव हुआ. अपने बदन को ढीला छोड़ते हुए उसने अपनी जाँघों में दूरी बना ली
और राजीव के कठोर स्पर्श की प्रतीक्षा के आनंद में आँखें मूँद लीं. राजीव
का पुरुष्तव हिलोरें ले रहा था. क्षणों को बीच में आने की अनुमति न थी.
साँसों की रफ़्तार तेज़ हो गयी. रगों में ख़ून की तेज़ रफ़्तार से दिमाग़ सन्न हो चुके थे.
दामिनी एक बार फिर ज़ोर से चमकी.
दो जवानियाँ आनंद के सागर में हिलोरें लेती हुईं धीरे धीरे शांत हो कर नींद के आग़ोश में समा गयी . *********************
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धारावाहिक कहानी ‘वक़्त’ का दूसरा भाग प्रबुद्ध पाठकों के समक्ष शीघ्र ही
रखने का प्रयास रहेगा. साभार ]
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