
कहानी - सुपर डांसर
लेखक - अब्दुल ग़फ़्फ़ार
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क्या ग़ज़ब की नाच रही थी। उसके बदन में जैसे बिजली कौंध रही थी। "जाती हूँ मैं, जल्दी है क्या" गाने पर लाजवाब परफार्मेंस दिया उसने।
जजेज़ हैरान और दर्शक परेशान थे इस सात साल की बच्ची का हुनर देखकर। आख़िरकार उसने सोनी टीवी के रियलिटी शो "सूपर डांसर" का "फ़र्स्ट प्राइज़" अपने नाम कर ही लिया।
ऐंकर ने जब रेहम के अभिभावक का नाम पुकारा
तो हॉल में मौजूद तमाम निगाहें दोनों पैरों से विक्लांग जावेद की तरफ़ उठ गईं, जो बैसाखी के सहारे स्टेज की तरफ़ बढ़ रहा था।
जावेद के स्टेज पर चढ़ते ही रेहम, पापा-पापा कहते हुए उससे लिपट गई और ज़ारो क़तार रोने लगी।
ख़ुशी के मारे जावेद के आंसू भी रुकने का नाम नही ले रहे थे। जब स्टेज पर मौजूद ऐंकर और अन्य पार्टीसिपेंट्स ने जावेद की हौसला अफ़ज़ाई की और रेहम की परवरिश के बारे में जानना चाहा तो जावेद ने बताया कि वह रेहम का गुरु भी है, मां भी है और बाप भी। उसने अपने पैरों की जगह हाथों पर खड़े होकर रेहम को नाचना सिखाया है। आज रेहम ने "फ़र्स्ट प्राइज़" लेकर उसकी सारी उम्मीदें जवां कर दी हैं।
आज से सात साल पहले शहर का उभरता हुआ डांसर जावेद एक आॉटो-ट्रक एक्सीडेंट में अपने दोनों पैर गंवा बैठा था। हादसे के बाद जब उसकी आंखें खुलीं तो ख़ुद को एक सरकारी अस्पताल के बेड पर पाया। हैरत तो तब हुई जब उसे मालूम पड़ा कि वो अपने शहर से सौ किलोमीटर दूर के अस्पताल में भर्ती है।
ज़ख्म ठीक होने के बाद जब भी वह अपने पैरों की तरफ़ देखता तो उसके दिल में एक ज़बरदस्त हूक सी उठती और वह यही सोच कर सब्र कर लेता की उसकी क़िस्मत में डांसर बनना लिखा ही नहीं था।
जावेद अनाथालय से भागा हुआ लावारिस नौजवान था। उसे नाचने का बचपन से बहुत शौक़ था। उसने शुरू में गांव की नाच पार्टी में नाचना शुरू किया। फिर अपने शहर के आर्केस्ट्रा कंपनी 'जुबली म्यूज़िकल ग्रूप' का डांसर बन गया।
बहुत जल्द ज़िले का कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम जावेद के बिना अधूरा माना जाने लगा। फीमेल डांसर्स के मद्देमुक़ाबिल मेल डांसर में उसका कोई विकल्प नहीं था। उसकी दूर दूर तक डिमांड होने लगी। उसके पास पैसे भी आने लगे। फिर वो डांस की बारीकियां सीखने मुंबई चला गया।
आर्थिक तंगी के चलते वो ज़्यादा दिनों तक मुम्बई नहीं रह सका और मात्र छह महीने डांस सीखने के बाद वापस अपने शहर के लिए चल पड़ा।
जावेद ट्रेन से उतर कर आटो से जा रहा था कि आटो एक तेज़ रफ़्तार ट्रक की चपेट में आ गयी। फिर क्या हुआ उसे कुछ पता नहीं। बाद में पता चला कि उस हादसे में आटो ड्राइवर की जान चली गई थी।
जावेद के पैर तो चले गए लेकिन उसकी जान बच गई। उसे पूरी तरह ठीक होने में छह महीने लग गए।
उसके बाद जावेद इसी शहर का होकर रह गया और अपने थ्री व्हीलर से कबाड़ ख़रीद बिक्री का काम करने लगा। इस अंजान शहर में उसको पहचानने वाला कोई नहीं था। इसलिए ज़िंदगी बड़े आराम से कट रही थी।
कबाड़ बेचने के पहले गर्मी में फुटपाथ पर और जाड़े में रैनबसेरा में उसकी रातें कटा करती थीं लेकिन हालात बदले तो किराए का एक ख़ूबसूरत कमरा ले लिया।
ये तब की बात है जब उसने कबाड़ का धंधा नया नया शुरू किया था। वो जाड़े की एक सर्द सुबह थी। मस्जिद से अज़ान की सदाएं आ रही थीं। वो अपने कंबल में उकड़ू पड़ा कसमसा रहा था तभी रैन बसेरा के बग़ल में कचरे के ढेर से किसी नवजात के रोने की आवाज़ आई।
वो कंबल फेंक फांक कर बाहर निकला और आवाज़ की तरफ़ दौड़ पड़ा। नज़दीक जाने पर कपड़े में लिपटी एक मासूम गुड़िया उसका इंतज़ार कर रही थी। बच्ची हल्की आवाज़ में "कहां-कहां" कर रही थी। लग रहा था कि कुछ ही देर पहले उसे यहां कोई फेंक गया है। ताज़ा ताज़ा दुनिया में आई लग रही थी क्योंकि उसकी ठीक से सफ़ाई भी नहीं हुई थी। जावेद ने फ़ौरन उस नन्हीं सी जान को उठाया। थोड़ी सी सफ़ाई की और फिर अपने कलेजे से लगाकर उसे गर्मी देने लगा।
बच्ची चुप हो गई। उसकी सांसे रफ़्ता रफ़्ता बहाल होने लगीं। फिर वो सो गई।
सूरज निकलते निकलते जावेद की गोद रौशन हो चुकी थी। वो बिना शादी के ही बाप बन चुका था।
सुबह होते ही बच्ची भूख से रोने लगी। वो फ़ौरन बग़ल के चायख़ाने गया और उसके लिए एक ग्लास नीम गर्म दूध लाया। दूध पिलाने का उसे कोई अनुभव नहीं था। उसने दूध को कटोरी में रखा और चम्मच से उसके मूंह में डालने लगा। बच्ची शुरू में कुछ दूध पीती कुछ बाहर कर देती। लेकिन दो तीन दिनों में वो चम्मच से पीने की अभ्यस्त हो गई।
रेहम धीरे-धीरे बड़ी होने लगी तो जावेद ने उसका एडमिशन एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में करा दिया। फ़िलहाल वो पढ़ती भी है और डांस भी सीखती है। जावेद को रेहम में अपने अधूरे ख़्वाब पूरे होते नज़र आते हैं। जावेद ने ठान रखा है कि रेहम को ऐसी डांसर बनाएगा कि उसको जन्म देने वाले उसे दूर से देखकर अपनी क़िस्मत पर आंसू बहाएंगे।
'सूपर डांसर' के लिए उसने रेहम को लगातार छह महीने तक सख़्त रियाज़ कराया था। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच ख़्यालों से लौटते हुए जावेद ने देखा कि रेहम ने अपने हाथों में फ़र्स्ट प्राइज़ की ट्राफी उठा रखी है।
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- अब्दुल ग़फ़्फ़ार
कथाकार
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