
शब्द गुच्छ
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किसान मरते थे मरते हैं मरते रहेंगे,
वे जीवन भर आधे पेट सोते रहेंगे,
सियासत का उनसे कोई सरोकार नहीं,
वे उनके नाम सत्ता की रोटी सेकते रहेगें।
वे जीवन भर आधे पेट सोते रहेंगे,
सियासत का उनसे कोई सरोकार नहीं,
वे उनके नाम सत्ता की रोटी सेकते रहेगें।
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तु सबसे ऊपर है माँ
जब तन तपता है बुख़ार से
तब मुझे किसी ईश्वर या किसी
दार्शनिक का खयाल नहीं रहता
प्रेमिका की याद भी नहीं आती
ना किसी प्रकार के वासना की
इक्क्षा ही रहती है।
हृदय मे तु बसती है
जबान पर कराहट के साथ
वो अमृत रूपी शब्द का
पूनरावर्तन बार बार होता है
जी चाहता है तेरा हाथ मेरे सर पर रहे
अपनी साधारण सी स्वर मे
कोई देवी या ललन का गीत गाये
जो मुझे सुकून देता रहे
और मै जीवन के कर्म पथ पर
होने को स्वथ हो जाऊं
या फिर से तेरी गोद मे खेलने को
चीर नीद्रा मे सो जाऊँ।
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तुझको साल मुबारक सुन ले,
मुझको मेंरा गम अच्छा है।
मैंने माना मै झूठा हूँ,
तू जग में सबसे सच्चा है।
तुझको पाने के चक्कर में,
दर्द पा लिया बहुत ज्यादा।
तेरी राह निहारूँगा मैं,
फिर भी करता हूँ ये वादा।
मेरे जैसे तेरे दिल में,
बिल्कुल भी एहसास नही हैं।
मेरे दिल में तेरे जैसा,
बिलकुल कोई खास नहीं है।
तू दीवाना, पागल, वहशी,
चाही मुझको कुछ भी कह ले।
मेरे मन मंदिर की देवी,
तू ही है बस इतना सून ले।
नये वर्ष के नये समय में,
पीड़ा ने है मुझको घेरा।
नहीं पता है इस जीवन में,
कब आयेगा नया सवेरा।
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हर कश्ती का कोई न कोई किनारा होता है।
जग में सब का कोई न कोई सहारा होता है।।
दर्द उदासी थी और तन्हाई सब मिलती है।
इश्क में यारों लेकिन सब कुछ गंवारा होता है।।
किस्मत और नसीब की बातें सब झूठी हैं।
कर्म करे जो फल वही हमारा होता है।।
सुख-दुख खोना पाना रीत है जीवन की।
इन सब में खुद को यारों बहलाना होता है।।
बुलंदी कहीं एक जगह ठहरती नहीं सांवरे।
इसकी फितरत मे ही जगह बदलना रहता है।।
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गिले मेरे भी थे,
शिकायत मुझे भी करनी थी,
वादे मुझे भी याद दिलाने थे,
जो कसमें खिलाए थे तुमने
तुम्हें वह भी बताना था।
गुस्सा मुझे भी करना था,
तुम्हें डांटना भी था।
सुलह की जिरह लगानी थी
मनाने की हरसंभव कोशिश,
तो करने दिया होता।
पर तुम तो एक झटके में
नजर फेर कर चल दिए..!
राम गर्ग।
चल समेट ले तू अपने को
राही मंजिल यहा न तेरा
तेरा गांव तो और कहीं है
प्रेम नगर मे नही बसेरा
रूप रंग की इस दुनिया मे
सच्चे प्यार का मोल नहीं है
छोड़ छाड़ चल इस दुनिया को
और डाल ले कही पे डेरा
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- राम गर्ग।
हंडिया
प्रयागराज
उत्तर प्रदेश
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