
सत्येन्द्र प्रजापति की नज़्म
"बात"
मेरे बालों में अपनी उंगलियों को फिरा के
जब तुम कहती हो कि ये बात-बात पर
जो कुछ बाते तुम बताते रहते हो
उससे कोई इत्तेफ़ाक़ भी रखते हो
मैं एकदम चुप-सा हो जाता हूँ
तुम्हारी उंगलियों को देखने लगता हूँ
पर इस बार मैं कहूँगा
इन्हीं में से एक बात होगी
जो बात-बात में
हर एक बात से इत्तेफ़ाक़ रखेगी
पर वो बात कभी नहीं समझ आएगी तुम्हें
या तुम उसे हंसकर टाल दोगी
ये कहकर कि
"तुम पागलों जैसी बातें करते हो"
और मैं तुम्हें अपने आग़ोश में ले लूँगा
फिर एक बात बताने को
और तुम बात-बात में अपनी उँगलियाँ फिराती रहना
तुम्हें पता है तुम्हारी उँगलियाँ
सबसे ज़्यादा बातूनी है
और उनकी लरज़िश
मेरे रूह के सामने कुछ बात रख देती है
ऐसी बातों से रूबरू होकर ही
मैं तुम्हें वो सब बात बताता हूँ
जो तुम्हें सिर्फ मेरी बात लगती है
असल में
मैं तुम्हें तुम्हारी ही बात बताता हूँ
जिस्मों वाली रूहानी बातें
बेशक !
मैं हर एक बात से इत्तेफाक रखता हूँ
पर ये बात तुम अपनी बातों को मत बताना
वरना हमारे बीच वो बात नहीं रह जायेगी
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- सत्येन्द्र प्रजापति
पीएचडी इंडियन एंड वर्ल्ड लिटरेचर
इंग्लिश एंड फॉरेन लैंगुएज यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
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