अपनी सेना के मनोबल को ऊँचा रखने के लिए उन्होंने नारा दिया -
" सवा लाख लाख से एक लड़ाऊँ, चिड़ियों से मैं बाज़ लड़ाऊँ, तब गोबिंद सिंह नाम कहाऊँ । "
Author's Name: एम. के. बजाज
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संत सिपाही – गुरु गोबिंद सिंह
संस्थापक – खालसा पंथ
भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं –
यदा यदा हि धर्मसय ग्लानिर्भवती भारत:!
अभ्युतथानमधर्मसय तदात्मानम सृजाम्यहम!!
अर्थात जब जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ता है और धर्म की हानि होती है, तब तब ईश्वर मनुष्य के रूप में अवतार ले कर धर्म की रक्षा करते हैं।
भारत में, मुग़ल शासक औरंगज़ेब के शासनकाल में जब तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन का दौर ज़ोरों पर था और तमाम हिंदू धर्म के अनुयायियों को ज़बरदस्ती इस्लाम क़बूल करने पर मजबूर किया जा रहा था, उसी वक़्त सिख सम्प्रदाय के 9वें गुरु - गुरु श्री तेग़ बहादुर के घर में एक बालक ने जन्म लिया. बालक का नाम गोबिंद राय रखा गया.
विलक्षण प्रतिभा के स्वामी, इस बालक का जन्म 22 दिसंबर 1666, शुक्ल पक्ष में, गंगा के तट पर बसे पटना शहर में हुआ. इनकी माता का नाम 'माता गूजरी' था.
बचपन में एक स्थानीय रानी, जिनकी कोई संतान नहीं थी, बालक गोबिंद राय को बहुत प्यार करती थी. प्रतिदिन उनको पूरी और छोले खिलाती थी. उनके बचपन की याद में 'बाल लीला' गुरुद्वारा में आज भी यह रस्म जारी है. दानापुर की एक और महिला माई जी, उनको बड़े प्यार के खिचड़ी बना कर खिलाती थी, जिसकी याद में हांडी साहिब गुरुद्वारा की स्थापना हुई और आज भी वहाँ केवल खिचड़ी का प्रसाद बनता है.
उनके पिता सिख सम्प्रदाय के नौवें गुरु थे. पिता श्री तेग़ बहादुर के शहीद होने के बाद, मात्र 9 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने गुरु की गद्दी सम्भाली.
सन 1699 में वैसाख़ी के दिन उन्होंने 'पँज प्यारे' और 'खालसा पंथ' की नींव रखी. अपने नाम के साथ 'सिंह' जोड़ा और सभी अनुयायियों के लिए 'spiritual code of conduct' जारी किया.
१. Worship one God. ईश्वर एक है.
२. Read Guru Granth. गुरु ग्रन्थ पढ़ें.
३. Join the Sikh Congregation. सिख सभा में भाग लें.
४. Serve Others. दूसरों की सेवा करें.
५. Refrain from worshipping any other created object or living thing. निराकार परमात्मा को याद करें.
उन्होंने खालसा पंथ के अनुयायियों के लिए पाँच वस्तुओं की आवश्यकता पर बल दिया. ये हैं - केश, कड़ा, कंघा, कच्छा और किरपान.
उन्होंने प्रथम गुरु से नौवे गुरु की सब शिक्षाओं का संकलन किया और 'गुरु ग्रन्थ साहिब' की रचना की. सिख धर्म के अनुयायियों को सिर्फ़ 'ग्रन्थ साहिब' को ही गुरु मानने का आदेश भी दिया. इस प्रकार से वह सिख सम्प्रदाय के 10 वें और अंतिम गुरु के रूप में जाने जाते हैं.
गुरु जी को चार संतानों की प्राप्ति हुई. जिनको साहिबज़ादों के नाम से जाना जाता है. इनके नाम हैं - साहिबज़ादा अजित सिंह, ज़ोरावर सिंह, जूझार सिंह और फ़तह सिंह. उनके जीवन काल में ही चारों बेटे धर्म की राह में शहीद हुए.
मुग़ल शासक के ख़िलाफ़ और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने सिखों की एक मज़बूत सेना का गठन किया. संख्या में कम लेकिन बुलंद होसलों की इस सिख सेना ने मुग़लों की शक्तिशाली सेना के दाँत खट्टे कर दिए. उन्होंने अपनी रणनीति में छापामार नीति (Gorilla) का प्रयोग किया.
अपनी सेना के मनोबल को ऊँचा रखने के लिए उन्होंने नारा दिया -
" सवा लाख लाख से एक लड़ाऊँ, चिड़ियों से मैं बाज़ लड़ाऊँ, तब गोबिंद सिंह नाम कहाऊँ । "
यानि, एक सिख सवा लाख मुग़ल सैनिकों से लड़ने की ताक़त रखता है. चिड़ियों जैसे मुग़ल सैनिक के सामने एक सिख बाज़ की तरह है. मालूम हो कि हम गोबिंद सिंह की सेना है.
ऐसी शख़्सियत दुनिया में बार बार जन्म नहीं लेती. उम्र भर गुरु गोबिंद सिंह अन्याय के विरोध में और धर्म की रक्षा में लीन रहे.
इस कार्य में उन्होंने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया.
कभी हार न मानने वाले, इस संत सिपाही ने 7 अक्तूबर 1708 में 42 वर्ष की अल्पायु में, नांदेड़ महाराष्ट्र में देह का त्याग किया और परमात्मा में लीन हो गए. उनकी याद में नांदेड़ गुरुद्वारा को हुज़ूर साहिब के नाम से भी जाना जाता है.
आत्मा अजर अमर है. आज भी उनकी शिक्षा, उनके प्रत्येक अनुयायी का मार्गदर्शन कर रही है. उनके स्मरण मात्र से ही एक ऊर्जा का संचार होता है. अन्याय के विरुद्ध उनकी लड़ाई आज भी अपनी सार्थकता बनाए हुए है. अपने साहस और मनोबल से अल्प जीवन काल में ही उन्होंने यह साबित कर दिया कि युद्ध में जीत हथियारों या सैनिकों की संख्या से नहीं बल्कि सच्ची नीति और हिम्मत से होती है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि गुरु गोबिंद सिंह के शौर्य और संघर्ष के परिणाम स्वरूप भारत का वर्तमान रूप सुरक्षित है.
"हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा.”
जो बोले सो निहाल - सत श्री अकाल!!!!
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