
दिलशाद नज़्मी की नज़्म
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फिक्शन की माबाद-उल-तबिआत
ड्राइंगरूम के सोफ़े में धंसकर तुम,
कहानी लिख रहे हो क्या?
कई कप चाय पीकर
अनगिनत सिगरेटों को फूंके
खिजाबी बालों को खिचड़ी बनाए,
फ़िक्र में ग़लतां
क़ुरअतुल ऐन ,मंटू ,यलदरम चुगताई के जैसा
अगर लिख पाए
पढ़ लूंगा
या फिर इस दौरे हाज़िर में
शमूएल, ज़ौकी, अख़्तर, या सदफ़, अबरार के जैसा
लिखा तुम ने?
क्या तुम ने पढ़ लिया है 'तुख़्मे खूं'
बोलो۔۔۔۔۔बताओ न?
चलो, छोड़ो भी,जाने दो
ये दरवाज़े पे ऊंचे ओहदे की तख़्ती लगा लेने से क्या होगा
बहुत अच्छा लिखोगे क्या?
सराहे जाओगे क्या और
लिखारी बनके उभरोगे?
सुनो भैया!, कहानी भी हक़ीक़त मांगती है न,
हर एक किरदार उसमें ज़िंदा होता है
वो लफ़्फ़ाज़ी नही करता
फ़क़त जुज़यात से क्या काम चलता है
इलाक़ाई ज़बां किरदार के मुँह
से उगलवाओ
वो जैसा है ,उसी बोली में तुम भी पेश तो आओ,
ज़रा निकलो ड्राइंगरूम से बाहर निकलकर अब
खुली सड़कों पे घूमो
तंग गलियों से कभी गुज़रो
तुम्हारी पॉश कालोनी से आगे कच्ची बस्ती है
जहाँ पर ज़िंदगी की फ़ाक़ा-मस्ती है
कभी रिक्शे पे भी बैठो
कबाब और नान का ढाबा भी देख आओ
तो देखो चाय वाला,ख्वांचा,और पान की गुमटी
क़साबों की दुकानों से कभी गुज़रो
कभी उन नीम-उरयाँ औरतों पर भी नज़र डालो
टिकी हैं बिजली के खम्भों से जो
शायद सवाली हैं
मिलेंगे गाहे-गाहे कचरा चुनते
फूल से बच्चे
नहा कर सामने आ जाएँ तो पहचान पाओगे
कभी मंदिर कभी मस्जिद, किसी गुरुद्वारे से होकर
मुक़द्दस चर्च तक पहुंचो
बहुत सारे हैं मौज़ूआत
बिखरे शहर के अंदर
मगर तुम घर से तो निकलो
तुम्हें क्या लग रहा है?
नाम की तख़्ती
कहानी को बहुत मशहूर कर देगी
तुम्हारा नाम और ओहदा कभी
साहित्य का इनआम पा लेगा
अगर तुम खसिया-बरदारी के फन से ख़ूब वाकिफ़ हो
तो मुमकिन है
अगर तुम गश्ती टोले के बने हो रुक्न, तो बेफ़िक्र हो जाओ
तुम्हें वो सब मिलेगा
जिसकी ख्वाहिश है
ड्राइंगरूम में बैठो۔۔۔۔۔
पियो सिगरेट जी भर के
खिजाबी बालों को जमकर खुजाओ
पीठ अपनी थापथपाओ अपने हाथों से
अगर है ज़ोअम के अच्छा ही लिखते हो
लिखे जाओ
लिखे जाओ
लिखे जाओ
मगर अच्छी कहानी
अच्छे अफ़साने को
नॉवेल को
वही सब लोग पढ़ते हैं
जिन्हें मालूम होता है
कि कैसे लिखा जाता है
- दिलशाद नज़्मी
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