
भरमाने से पहले
1.
भरमाने से पहले
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औरत की स्मृति में बहती है आकाशगंगा
बचाती रहती है पृथ्वी को
दूसरे ग्रहों से गिरने वाले उल्का-पिंडों से
अपरिमित जलागारों के तटों को
स्वतंत्र छोड़ते हुए भी
पानी की सतह पर लय और छ़द
छोड़ती रहती है पृथ्वी
महाद्वीप की पेंदी में जन्म लेकर
हमने अपने भूखंड को एक नाम दिया है
इसकी शांति के लिए निगहवान रहकर
हम युद्ध करते हैं
लड़ते हुए हम मरते हैं आनन्द से
जगत के विस्तार का अभागा प्रेमी
जो विधानों को बदल डालता है
उसकी देह बारूद जैसी महकती है
अपनी विपत्तियों के आशिक हैं हम
आयुष्मान बनाने की कलाएं
तुम्हारे हाथ में नहीं हैं
जितने भी वेश बदलो
तुम बाजीगर ही बने रहोगे बांस पर
चढ़ते-उतरते हुए
हमें प्रारब्ध की परिभाषा मत बताओ बाजीगर
मुसाफ़िरों का मजमा लगाकर
कभी मनहूस कभी मोहक आवाज निकालते हुए
तुम्हारे कंठ से चीख निकलेगी अब
इस भूखंड पर लोगों को भरमाने से पहले
हम प्रलय से भी मुठभेड़ करते रहेंगे और
औरतों के हृदय में बहती रहेगी आकाशगंगा ।
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2.
माहवारी में है सिपाही की औरत
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सुरमई रात है
सिपाही की औरत माहवारी में है
पीरियड में जब वह रहती है तो
सिपाही को सटने नहीं देती
अभी कल-करखाने से
कामगार और कारीगर सड़क पर आ गये हैं
वे जल्दवाजी में हैं लपकते हुए
तड़पते हुए भूख से औरत-बच्चों के साथ
सैकड़ों कोस जाना है उन्हें
सड़कों के किनारे जो घर हैं
उनमें दरवाजों पर
भीतर से कुण्डी लगी है
किवाड़-दरीचे नहीं खोलते गृहपति
घरों में कैद नागरिकों को लगता है कि
जरा सा भी दरार रह जाने पर
सड़क पर से प्रेत-जिन्न घुस आएंगे
साईकिल पर पैडल मारता किसी कामगार को
रोक कर सिपाही उसकी जेब तलाशता है
सिपाही को मालूम है कि किन घरों में
कमजोर गड़ेरिये की रानी रहती है
गटकते हुए मानिकचंद मार्का देशी बोतल
गड़ेरिये के रहवास की ओर बढ़ जाता है सिपाही
सिपाही लकड़हारे के घरों में नहीं घुसता
कुल्हाड़े से डरता हैं सिपाही
भुकभुकाते तारे सिमटने लगते हैं तो
सिपाही अपने घर-मुख हो जाता है
उसकी गश्ती भरी रात का अवसान होने पर है
जानता है सिपाही कि उसकी औरत माहवारी में है
वह सटने नहीं देगी ।
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प्रभात सरसिज
कवि
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