
एक कोने में
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एक कोने में,
हर रोज एक तारा उगता था।
थी कई चाह उसकी भी
मगर किसी को ना बतलाता था।
एक कोने में,
हर रोज एक तारा उगता था।
था घर उसका आसमां पर
मगर धरती से भी नाता था।
एक टुक से इसकी ओर
हरदम तकते रहता था।
एक कोने में,
हर रोज एक तारा उगता था।
मै भी जाऊं घुमूं धरती
उसकी यही अभिलाषा थी
स्मरण कर फिर इंसान का कर्म
वह चुपके से छुप जाता था।
एक कोने में,
हर रोज एक तारा उगता था।
"किताब नगर की तितली रानी"
सदियों से ख्वाहिश मेरी पुरानी
बनूं मैं किताब नगर की तितली- रानी।
पन्नें हों मेरा सेज, लिखावट बने सिरहानी।
पहला पन्ना हो ननिहाल, दूसरा बने ददिहाल।
और आखिर के पन्नों पर
रहते हों प्यारे बाबा जानी।
सदियों से ख्वाहिश मेरी पुरानी
बनूं मैं किताब नगर की तितली- रानी।
"मन"
मैं मन हूं। मैं मन हूं।मैं मन हूं।
मैं साधूं चुप्पी तो शांत कहलाऊं।
चहकुं जो हृदय की उपवन तो,
मैं चंचल बन जाऊं।
मैं शोर, मैं सन्नाटा,मैं लहर मैं तुफां।
मैं मन हूं। मैं मन हूं।मैं मन हूं।
नैनन में झिलमिलाऊं तो मेघा कहलाऊं।
अश्रु का लूं रूप तो मैं बरखा बन बह जाऊं।
मैं खनकुं, छमकुं तो नृत्य बन जाऊं
मैं कठोर,मैं कोमल, मैं दुःख, मैं सुख।
मैं मन हूं। मैं मन हूं।मैं मन हूं।
मैं मोह बन लालच कहलाऊं।
करूं मैं छल तो कपटी बन जाऊं।
मैं जीतूं तो जीवन कहलाऊं।
हारूं तो मृत्यु बन जाऊं
मैं निश्चल, मैं कपट , मैं हार मैं जीत।
मैं मन हूं।मैं मन हूं। मैं मन हूं।
"प्राकृतिक आपदा"
ये जो देख रहे हो तुम
ये महज पानी की धारा नही है।
ये है सैलाब सैकड़ों कटते पेड़ों का
जिनका कोई किनारा नही है।
ये बहता जाएगा चाहे जिस ओर
इनका कोई ठिकाना नही है।
होता रहता है हरदम ऐसा
ये गुनाह कोई पुराना नही है।
है बड़ा खौफ़नाक मंजर
इसे देख कर मुस्कुराना नही है।
क्यों खफा हो रहे हो तुम, कुदरत के कहर से,
हुई है इनकी भी कत्ल
क्या तुमने कभी जाना नही है??
नाम- आफिया आफिफा
पता- बेतिया ( पश्चिम चंपारण) बिहार
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